सरकार की दोहरी नीति के कारण सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्ति पाना असंभव है ।एक तरफ तो सरकार प्लास्टिक के दुष्परिणामों को देखते हुए उद्योगों को लगाने लाइसेंस देती है तो दूसरी तरफ प्लास्टिक के उत्पाद को रोकने जनता से अपील करती है ।सरकार की यही दोहरी नीति के कारण आज देश में नशा धूम्रपान पर रोक नहीं लग पाई है तथा कई समस्याओं के लिए सरकार ने कानून बनाएं जैसे पेड़ों की कटाई, पिछले दिनों लागू मोटर व्हीकल एक्ट और स्वच्छता अभियान आदि लेकिन यह उम्मीद के मुताबिक प्रभावी साबित नहीं हुए हैं ।इसकी वजह लोगों में जागरूकता की कमी है। देश के प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करने या नहीं करने का आम जनता से आव्हान किया ।इसके बाद भी आज लोग मजबूरी में चोरी छुपे प्लास्टिक का उपयोग कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को चाहिए कि वह सिंगल प्लास्टिक पर बैन कर दें । पर वह संभव नहीं है क्योंकि पूर्व सालों में सरकारों ने प्लास्टिक बनाने वाली फैक्ट्रियों को लाइसेंस दे दिए है उस समय प्लास्टिक की जरूरत थी और तब उसके हानिकारक प्रभावों के बारे में पता नहीं था ।क्योंकि सरकार प्लास्टिक को तत्काल बैन करें तो कैसे?क्योंकि प्लास्टिक बनाने वाली फैक्ट्री को चलाने वाले उद्योगपतियों ने बैंकों से ऋण ले रखा है उसे चुकाना होगा तथा फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारियों के रोजगार के वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए कुछ समय लगेगा तब तक लोगों के द्वारा जन जागृति फैलाकर प्लास्टिक रोकने हेतु प्रयास करना होगा। जिससे देश कई दुष्परिणामों से बचेगा , प्रगति करेगा ।कोशिश की जाए तो क्या नहीं हो सकता है, बस जरूरत है संकल्प लेने उस पर अमल करने की ।आइए हम यही संकल्प लेते हैं कि हम प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेंगे तथा अपने आसपास के लोगों को प्लास्टिक के उपयोग से दुष्परिणामों के बारे में बताकर उन्हें जागरूक करेंगे। समाज को जागरूक करेंगे और देश में जनजागृति फैलाकर प्लास्टिक रोकने का प्रयास करेंगे। दुष्यंत कुमार का यह शेर के यहां पर बिल्कुल ठीक बैठता है कि
"कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता ,
तबीयत से एक पत्थर तो उछालो यारों"
संजीव श्रीवास्तव
संपादक - देश का संदेश